भारत का एकीकरण और राज्यों का निर्माण
इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन : अधिकतर रजवाड़ों
के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के लिए एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए | इस सहमति पत्र
को ही 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन' कहा जाता है | इस पर
हस्ताक्षर का अर्थ का कि रजवाड़े भारतीय संघ में शामिल होने के लिए
सहमत हैं |
राष्ट्र-निर्माण की अवधारणा : राष्ट्र-निर्माण
एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों
में राष्ट्रिय चेतना प्रकट होती है | राष्ट्र-निर्माण राजनितिक
विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है | इसके अनुसार एक
राष्ट्र को ऐसी सभी आवश्यक प्रक्रियाओं से गुजरा जाए जिसमें सभी को न्याय, राजनितिक
भागीदारी, विकास, रोजी-रोटी सुलभ हो |
1947 के भारत विभाजन के परिणाम :
(i) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान जैसे देशों का
अस्तित्व में आना |
(ii) हिंसा और लाखों की जान-माल की हानि |
(iii) दोनों तरफ शरणार्थियों की समस्याएँ पैदा हुई |
(iv) विभाजन के परिणामस्वरुप कश्मीर की समस्या पैदा हुई |
स्वतंत्रता के बाद भारत के समक्ष चुनौतियाँ :
(i) शरणार्थियों का पुनर्वास की समस्या :
(ii) राज्यों के पुनर्गठन की समस्या :
(iii) देश को आर्थिक रूप से खड़ा करना
देशी रियासत जिन्होंने भारत संघ में शामिल होने का विरोध
किया था :
(i) जूनागढ़
(ii) हैदराबाद
(iii) कश्मीर
(iv) मणिपुर
कक्षा - 12TH राजनितिक विज्ञान स्वतंत्र भारत में राजनीति (भाग-2) अध्याय 1
देशी रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल करने में सरदार पटेल
की भूमिका :
भारत संघ में देशी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की
भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है | उन्होंने एकीकरण के लिए
निम्नलिखित कार्य किए |
(i) सरदार पटेल ने एकीकरण अधिनियम तथा प्रजातंत्रीकरण की
विधियों द्वारा अधिकांश रियासतों को भारत में मिलाया |
(ii) जूनागढ़ तथा हैदराबाद जैसी रियासतों ने भारत में शामिल होने
से मना कर दिया था, परन्तु सरदार पटेल के
राजनितिक कौशल और सूझ-बुझ से इन दोनों रियासतों को भारत में शामिल होने के लिए
मजबूर कर दिया गया |
(iii) कश्मीर को भी भारत में शामिल करने के लिए सरदार पटेल ने
प्रस्ताव दिया जिसे कश्मीर के राजा हरि सिंह ने नहीं माना, परन्तु जब
पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया उस स्थिति में उन्हें भारत की शर्तों पर
शामिल होना पड़ा |
(iv) गोवा, दमन और दीयू को
सैनिक करवाई द्वारा भारत में मिला लिया गया जिसे साधारण पुलिस करवाई की संज्ञा दी
गई |
भारत में ब्रिटिश इंडिया की स्थिति : ब्रिटिश इंडिया दो हिस्सों
में था |
(1) ब्रिटिश प्रभुत्व वाले भारतीय प्रान्त : भारत के इन प्रान्तों पर
ब्रिटिश सरकार का सीधा नियंत्रण था |
(2) ब्रिटिश नियंत्रण वाले देशी रजवाड़े : ये छोटे-छोटे आकार के राज्य
थे जिनपर अंग्रेजो का सीधा नियंत्रण नहीं था | इन्हें राजवाडा
कहा जाता था | इन रजवाड़ों पर राजाओं का शासन था | इन राजाओं ने
ब्रिटिश सरकार की अधीनता स्वीकार कर रखी थी और इसके अंतर्गत वे अपने राज्य के
घरेलु मामलों का शासन चलाते थे |
देशी रजवाड़ों के विलय में समस्या : आजादी के तुरंत पहले
अंग्रेजी-शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी
ब्रिटिश-अधीनता से आजाद हो जायेंगे | इसका मतलब यह था कि सभी
रजवाड़े जिनकी संक्या लगभग 565 थी ब्रिटिश-राज के समाप्ति
के बाद क़ानूनी तौर पर आजाद हो जायेंगे |
(i) अंग्रेजी-सरकार चाहती थी कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहे तो भारत या पाकिस्तान
में शामिल हो सकते है अथवा अपनी स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकते है |
(ii) भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला अथवा स्वतंत्र बने रहने का फैसला
का अधिकार वहां के राजाओं को दिया गया था | यह फैसला वहां
के जनता को नहीं करना था |
(iii) अंग्रेजों ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी जिससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही
खतरा मंडरा रहा था |
(iv) सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा की | अगले दिन
हैदराबाद के निजाम ने ऐसी ही घोषणा की |
(v) कुछ शासन जैसे भोपाल के नवाब संविधान-सभा में शामिल नहीं होना चाहते थे | देश कई हिस्सों
में बंटने वाला था और भारतीय लोकतंत्र का भविष्य अंधकारमय दिखाई देने लगा था |
देशी रजवाड़ों के लेकर सरकार का नजरिया :
(i) छोटे-बड़े विभिन्न आकार के देशों में बंट जाने की सम्भावना के विरुद्ध अंतरिम
सरकार ने कड़ा रुख अपनाया |
(ii) मुस्लिम लीग ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के इस कदम का विरोध किया | उसका मानना था
कि रजवाड़ों को अपनी मनमर्जी का रास्ता चुनने के लिए छोड़ देना चाहिए |
(iii) रजवाड़ों के शासकों को मानाने-समझाने में सरदार पटेल ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई
और अधिकतर रजवाड़े भारतीय संघ में शामिल होने के लिए राजी हो गए |
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय :
हैदराबाद की रियासत बहुत बड़ी थी | यह रियासत चारों तरफ से
हिन्दुस्तानी इलाकों से घिरी थी | पुराने हैदराबाद के कुछ
हिस्से आज के महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में और बाकि हिस्से आध्रप्रदेश में
है | हैदराबाद के शासक को निजाम कहा जाता था और वह दुनिया के
सबसे दौलतमंद लोगों में शुमार किया जाता था | निजाम चाहता था
कि हैदराबाद की रियासत को आजाद रियासत का दर्जा दिया जाए | इसी बीच भारत
सरकार ने हैदराबाद के निजाम से बातचीत जारी राखी | इसी दौरान
हैदराबाद के रियासत के लोगों ने निजाम के शासन के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया और जल्द
ही इस आन्दोलन ने जोर पकड़ा | आज के तेलंगाना इलाके के
किसानों ने निजाम के दमनकारी शासन से दुखी थे निजाम के खिलाफ उठ खड़े हुए | महिलाएं भी
निजाम के शासन में जुल्म की शिकार हुई थी | वो भी इस
आन्दोलन से बड़ी संख्या में जुड़ गई और हैदराबाद आन्दोलन का गढ़ बन गया | इस आन्दोलन के
अग्रीम पंक्ति में कुछ कांग्रेस के लोग भी थे | आन्दोलन को
दबाने के लिए निजाम ने अपनी अर्द्ध-सैनिक बल जिसे रजाकार कहा जाता है को रवाना कर दिया | रजाकार अव्वल
दर्जे के सांप्रदायिक और अत्याचारी थे जिन्होंने जमकर गैर मुस्लिमों को खासतौर पर
अपना शिकार बनाया और लूटपाट की | 1948 के सितम्बर में भारतीय सेना
ने सैनिक करवाई के तहत निजाम की सेना पर काबू कर लिया और निजाम को आत्मसमर्पण करना
पड़ा | और इसी के साथ हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हो गया |
मणिपुर का भारत में विलय :
आजादी के चाँद रोज पहले मणिपुर के महराजा बोध्चंद्र सिंह ने भारत सरकार के साथ
भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय का एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे | इसकी एवज में
उन्हें यह आशाव्सन दिया गया था की आन्त्ररिक स्वायत्तता बरक़रार रहेगी | जनमत के दबाव
में महाराजा ने 1948 के जून में चुनाव करवाया और इस चुनाव के
फलस्वरूप मणिपुर की रियासत में संवैधानिक राजतन्त्र कायम हुआ | मणिपुर भारत का
पहला भाग जहाँ सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार को अपनाकर चुनाव हुए थे | मणिपुर
विधानसभा भारत में विलय को लेकर गहरे
मतभेद थे | मणिपुर कांग्रेस रियासत का भारत में विलय
चाहती थी जबकि दुसरे राजनितिक दल इसके खिलाफ थे | भारत सरकार ने
महाराजा पर डाला कि वे रियासत का भारत संघ में विलय के समझौते पर
हस्ताक्षर कर दे और भारत सरकार को इसमें सफलता भी मिली और मणिपुर रियासत का भारत
में विलय हो गया |