बिहार बोर्ड मैट्रिक 10TH के हिंदी गद्य खंड अध्याय 1 :- श्रम विभाजन और जाति प्रथा OBJECTIVE (QUIZ) QUESTIONS दिए गए है इसकी मदद से आप अपने परीक्षा की तैयारी को और बेहतर बना सकते है, हर सवाल में सही उतर पर हरा रंग और गलत उतर पर लाल रंग दिखाएंगे सारे सवालों का जवाब देने के बाद अंत में आपको अपना परिणाम मिलेगा - RSL PLUS


[ हिन्दी गद्यखंड CH01 :- श्रम विभाजन और जाति प्रथा ]

 लेखक परिचय - भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 ई0 में मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। उच्च शिक्षा के लिए न्यूयॉर्क; अमेरिका, फिर वहाँ से लंदन गये। कुछ दिनों तक वकालत करने के बाद राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए इन्होंने अछूतों, स्त्रियों तथा मजदूरों को मानवीय अधिकार तथा सम्मान दिलाने के लिए अथक संघर्ष किया। 

 निधन - 6 दिसम्बर 1956 ई०, दिल्ली 

 प्रमुख रचनाएँ- द कास्ट्स इन इंडिया, देयर मेकेनिज्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट, हू आर शूद्राजः बुद्धा एंड हिज धम्मा, एनीहिलेशन ऑफ कास्ट, द अनटचेबल्स,हू आर दे आदि।

 पाठ परिचय - प्रस्तुत पाठ 'श्रम विभाजन और जाति-प्रथा' लेखक के विख्यात भाषण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का अंश है।

 अधिक जानकारी इस क्विज के बाद दिया गया है। 

कक्षा 10 - हिन्दी गद्य खंड अध्याय 1

पाठ का सारांश :-

प्रस्तुत पाठ 'श्रम विभाजन और जाति प्रथा' में लेखक ने जातीय आधार पर की जाने वाली असमानता के विरूद्ध अपना विचार प्रकट किया है। लेखक का कहना है कि आज के परिवेश में भी कुछ लोग 'जातिवाद' के कटु समर्थक हैं, उनके अनुसार कार्यकुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है, क्योंकि जाति प्रथा श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है। लेकिन लेखक की आपत्ति है कि जातिवाद श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का रूप लिए हुए है। श्रम विभाजन किसी भी सभ्य समाज के लिए आवश्यक है। परन्तु भारत की जाति प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करती है और इन विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है। 

जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान भी लिया जाए तो यह स्वभाविक नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रूचि पर आधारित नहीं है। इसलिए सक्षम समाज का कर्त्तव्य है कि वह व्यक्तियों को अपने रूचि या क्षमता के अनुसार पेशा अथवा कार्य चुनने के योग्य बनाए। इस सिद्धांत के विपरित जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पेशा अपनाने के लिए मजबुर होना पड़ता है।

जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि जीवन भर के लिए मनुष्य को एक ही पेशे में बाँध भी देती है। इसके कारण यदि किसी उद्योग धंधे या तकनीक में परिवर्तन हो जाता है तो लोगों को भूखे मरने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है, क्योंकि खास पेशे में बंधे होने के कारण वह बेरोजगार हो जाता है।

जाति-प्रथा से किया गया श्रम-विभाजन किसी की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं होता। जिसके कारण लोग निर्धारित कार्य को अरूचि के साथ विवशतावश करते हैं। इस प्रकार जाति-प्रथा व्यक्ति की स्वभाविक प्रेरणारुचि व आत्म-शक्ति को दबाकर उन्हें स्वभाविक नियमों में जकड़कर निष्क्रिय बना देती है।

समाज के रचनात्मक पहलू पर विचार करते हुए लेखक कहते हैं कि आर्दश समाज वह है, जिसमें स्वतंत्रता, समता, भातृत्व को महत्व दिया जा रहा हो।

बिहार बोर्ड मैट्रिक 10वीं हिंदी गद्य खंड के अध्याय 1 में श्रम विभाजन और जाति प्रथा के बारे में चर्चा की गई है।

श्रम विभाजन :- 

श्रम विभाजन की परिभाषा: श्रम विभाजन का अर्थ है काम को विभिन्न भागों में बांटना और प्रत्येक भाग को अलग-अलग लोगों द्वारा करना।
श्रम विभाजन के लाभ: श्रम विभाजन के लाभ हैं कि यह काम को अधिक कुशलता से करने में मदद करता है और उत्पादकता बढ़ाता है।

जाति प्रथा :- 

जाति प्रथा की परिभाषा: जाति प्रथा एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें लोगों को उनके जन्म के आधार पर विभिन्न जातियों में बांटा जाता है।

जाति प्रथा के नुकसान: जाति प्रथा के नुकसान हैं कि यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है और लोगों को उनके जन्म के आधार पर आंकती है।

श्रम विभाजन और जाति प्रथा के बीच संबंध :- 

श्रम विभाजन और जाति प्रथा के बीच संबंध: श्रम विभाजन और जाति प्रथा के बीच एक गहरा संबंध है, जहां जाति प्रथा के आधार पर लोगों को विभिन्न प्रकार के काम दिए जाते हैं।

श्रम विभाजन और जाति प्रथा के प्रभाव: श्रम विभाजन और जाति प्रथा के प्रभाव सामाजिक और आर्थिक असमानता को बढ़ावा देते हैं।

निष्कर्ष :- 

श्रम विभाजन और जाति प्रथा दोनों ही सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं, और इनके प्रभावों को समझना आवश्यक है।

यह जानकारी आपको श्रम विभाजन और जाति प्रथा अध्याय के बारे में और अधिक जानने में मदद करेगी और आपको बिहार बोर्ड मैट्रिक 10वीं की परीक्षा के लिए तैयार करेगी।