बिहार बोर्ड मैट्रिक इतिहास अध्याय – 4 (भारत में राष्ट्रवाद ) का OBJECTIVE (QUIZ) QUESTIONS दिए गए है इसकी मदद से आप अपने परीक्षा की तैयारी को और बेहतर बना सकते है, हर सवाल में सही उतर पर हरा रंग और गलत उतर पर लाल रंग दिखाएंगे सारे सवालों का जवाब देने के बाद अंत में आपको अपना परिणाम मिलेगा - RSL PLUS 

भारत में राष्ट्रवाद

Nationalism in India 


परिचय (Introduction) -: 

भारत में राष्ट्रवाद:- 

यूरोप में आधुनिक राष्ट्रवाद के साथ ही राष्ट्र-राज्यों का भी उदय हुआ। इससे अपने बारे में लोगों की समझ बदलने लगी। वे कौन है? उनकी पहचान किस बात से परिभाषित होती हैं, यह भावना बदल गई। उनमें राष्ट्र के प्रति लगाव का भाव पैदा होने लगा।

नए प्रतीको और चिन्हों ने, नए गीतों और विचारों ने नए संपर्क स्थापित किए और समुदायों की सीमओं को दोबारा परिभाषित कर दिया अधिकांश देशों में इन नयी राष्ट्रीय पहचान का निर्माण एक लंबी प्रक्रिया में हुआ।

राष्ट्रवाद का अर्थ :-

अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना एकता की भावना तथा एक समान चेतना राष्ट्रवाद कहलाती है । यह लोग समान ऐतिहासिक , राजनीतिक तथा सांस्कृतिक विरासत साझा करते है । कई बार लोग विभिन्न भाषाई समूह के हो सकते है ( जैसे भारत ) लेकिन राष्ट्र के प्रति प्रेम उन्हें एक सूत्र में बांधे रखता है ।

अधिक जानकारी इस क्विज के बाद दिया गया है।

कक्षा 10 इतिहास अध्याय – 4 ( भारत में राष्ट्रवाद )

अन्य महत्वपूर्ण जानकारी :-

राष्ट्रवाद को जन्म देने वाले कारक :-

यूरोप में :- राष्ट्र राज्यों के उदय से जुड़ा हुआ है । भारत , वियतनाम जैसे उपनिवेशों में :- उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ा है ।

भारत में राष्ट्रवाद की चेतना का उदय:- 

वियतनाम और दूसरे उपनिवेशों की तरह भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई।

औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे। उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था। लेकिन हर वर्ग और समूह पर उपनिवेशवाद का असर एक जैसा नहीं था।

उनके अनुभव भी अलग थे और स्वतंत्रता के मायने भी भिन्न थे। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इन समूहों को इकट्‌ठा करके एक विशाल आंदोलन खड़ा किया। परंतु इस एकता में टकराव के बिंदु भी निहित थे।

प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव तथा युद्ध पश्चात परिस्थितियाँ :-

 युद्ध के कारण रक्षा संबंधी खर्चे में बढ़ोतरी हुई थी ।

 इसे पूरा करने के लिए कर्जे लिये गए और टैक्स बढ़ाए गए ।

 अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिए कस्टम ड्यूटी और इनकम टैक्स को बढ़ाना पड़ा ।

 युद्ध के वर्षों में चीजों की कीमतें बढ़ गईं ।

 1913 से 1918 के बीच दाम दोगुने हो गए ।

 दाम बढ़ने से आम आदमी को अत्यधिक परेशानी हुई ।

 ग्रामीण इलाकों से लोगों को जबरन सेना में भर्ती किए जाने से भी लोगों में बहुत गुस्सा था ।

 भारत के कई भागों में उपज खराब होने के कारण भोजन की कमी हो गई ।

 फ़्लू की महामारी ने समस्या को और गंभीर कर दिया ।

 1921 की जनगणना के अनुसार , अकाल और महामारी के कारण 120 लाख से 130 लाख तक लोग मारे गए  ।

पहला विश्वयुद्ध, खिलाफत और सहयोग:- 

 1919 के बाद राष्ट्रीय आंदोलन नए इलाकों तक फैल गया था।

 उसमें नए सामाजिक समूह शामिल हो गए थे और संघर्ष की नयी पद्धतियों सामने आ रही थी।

 इन बदलावों को हम कैसे समझेंगे? उनके क्या परिणाम हुए?

 विश्वयुद्ध ने एक नयी आर्थिक और राजनैतिक स्थिति पैदा कर दी थी। इसके कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफ़ा हुआ।

 इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर क़र्ज लिए गए और करों में वृद्धि की गई।

 सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया।

 युद्ध के दौरान कीमतें तेजी से बढ़ रही थी

 1913 से 1918 के बीच कीमतें दोगुना हो चुकी थी जिसके कारण आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई थीं।

 गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया जाने लगा जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था।

1918-19 और 1920-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई। जिसके कारण खाद्य पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया।
उसी समस फ्लू की महामारी फैल गई। 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।
लोगों को उम्मीद थी कि युद्ध खत्म होने के बाद उनकी मुसीबतें कम हो जाएँगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

सत्याग्रह का अर्थ :-

 यह सत्य तथा अहिंसा पर आधारित एक नए तरह का जन आंदोलन करने का रास्ता था ।

 महात्मा गाँधी का भारत आगमन व सत्याग्रह का विचार

 महात्मा गांधी जनवरी 1915 में भारत लौटे। इससे पहले वे दक्षिण अफ्रीका में थे।

 उन्होनें एक नए तरह के जनांदोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था।

 इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे। सत्याग्रह के विचार से सत्य की  शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोद दिया जाता था।

 इस संघर्ष में अतत: सत्य की ही जीत होती है।

 गांधीजी का विश्वास था की अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।

1917 में खेड़ा गुजरात किसानों को कर में छूट दिलवाने के लिए उनके संघर्ष में समर्थन दिया फसल खराब हो जाने व प्लेग महामारी के कारण किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे । अहमदाबाद ( गुजरात ) 1918 में कपड़ा कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के समर्थन में सत्याग्रह आंदोलन किया ।

महात्मा गांधी के सत्याग्रह का अर्थ :-

सत्याग्रह ने सत्य पर बल दिया। गांधीजी का मानना था कि यदि कोई सही मकसद के लिए लड़ रहा हो तो उसे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से लड़ने के लिए ताकत की जरूरत नहीं होती है। अहिंसा के माध्यम से एक सत्याग्रही लड़ाई जीत सकता है ।

रॉलट ऐक्ट 1919 :-

► राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में बंद रखने का प्रावधान ।

रॉलट ऐक्ट का उद्देश्य :-

► भारत में राजनीतिक गतिविधियों का दमन करने के लिए ।

रॉलट ऐक्ट अन्यायपूर्ण क्यों था :-

► भारतीयों की नागरिक आजादी पर प्रहार किया ।
► भारतीय सदस्यों की सहमति के बगैर पास किया गया ।

रॉलट ऐक्ट के परिणाम :-

 6 अप्रैल को महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक अखिल भारतीय हड़ताल का आयोजन ।

 विभिन्न शहरों में रैली , जूलूस हुए ।

 रेलवे वर्कशॉप्स में कामगारों का हड़ताल हुई ।

 दुकाने बंद हो गई ।

 स्थानीय नेताओं को हिरासत में ले लिया गया ।

 बैंकों , डाकखानों और रेलवे स्टेशन पर हमले हुए ।

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जलियावाला बाग हत्याकांड की घटना  :-

10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई । इसके कारण लोगों ने जगह – जगह पर सरकारी संस्थानों पर आक्रमण किया । अमृतसर में मार्शल लॉ लागू हो गया और इसकी कमान जेनरल डायर के हाथों में सौंप दी गई ।

जलियांवाला बाग का दुखद नरसंहार 13 अप्रैल को उस दिन हुआ जिस दिन पंजाब में बैसाखी मनाई जा रही थी । ग्रामीणों का एक जत्था जलियांवाला बाग में लगे एक मेले में शरीक होने आया था । यह बाग चारों तरफ से बंद था और निकलने के रास्ते संकीर्ण थे ।

 नोट :- हिंसा फैलते देख महात्मा गांधी ने रॉलट सत्याग्रह वापस ले लिया ।

आंदोलन के विस्तार की आवश्यकता :-

रॉलैट सत्याग्रह मुख्यतया शहरों तक ही सीमित था । महात्मा गांधी को लगा कि भारत में आंदोलन का विस्तार होना चाहिए । उनका मानना था कि ऐसा तभी हो सकता है जब हिंदू और मुसलमान एक मंच पर आ जाएँ ।

चम्पारण आन्दोलन
1917 में उन्होनें बिहार के चंपारन इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
नील की खेती करने वाले किसानों के पक्ष में महात्मा गांधी का भारत में प्रथम सत्याग्रह किया।
चम्पारण आन्दोलन
1917 में उन्होनें बिहार के चंपारन इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
नील की खेती करने वाले किसानों के पक्ष में महात्मा गांधी का भारत में प्रथम सत्याग्रह किया।

खेड़ा किसान आन्दोलन:- 

1918 में गाँधीजी ने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए।

महात्मा गांधी ने क्यों खिलाफत का मुद्दा उठाया :-

रॉलट सत्याग्रह की असफलता के बाद से ही महात्मा गांधी पूरे भारत में और भी ज्यादा जनाधार वाला आंदालन खड़ा करना चाहते थे। उन्हे विश्वास था कि बिना हिंदू और मुस्लिम को एक दूसरे के समीप लाए ऐसा कोई अखिल भारतीय आंदोलन खड़ा नही किया जा सकता इसलिए उन्होने खिलाफत का मुद्दा उठाया ।

 ख़लीफ़ा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में बंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था।

मोहम्मद अली और शौकत (अली बंधुओं) के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जनकार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी।

सितंबर 1920 में। कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि ख़िलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए।

असहयोग ही क्यों?

गांधी जी की प्रसिद्ध पुस्तक हिंद स्वराज (1909) में महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है।

 अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।

असहयोग आंदोलन के कारण :-

 प्रथम महायुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों द्वारा भारतीय जनता का शोषण ।

 अंग्रेजों द्वारा स्वराज प्रदान करने से मुकर जाना ।

 रॉलेट एक्ट का पारित होना ।

 जलियाँवाला बाग हत्याकांड ।

 कलकत्ता अधिवेशन में 1920 में कांग्रेस द्वारा असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव बहुमत से पारित ।

► असहयोग खिलाफत आन्दोलन

असहयोग – खिलाफत आंदोलन की शुरुआत जनवरी 1921 में हुई थी ।

अगर सरकार दमन का रास्ता अपनाती है तो व्यापक सविनय अवज्ञा अभियान भी शुरू किया जाए। 1920 की गर्मियों में गांधीजी और शौकत अली आंदोलन के लिए समर्थन जुटाते हुए देश भर में यात्राएँ करते रहे।

प्रत्येक सामाजिक समूह ने आंदोलन में भाग लेते हुए ‘ स्वराज ‘ का मतलब एक ऐसा युग लिया जिसमें उनके सभी कष्ट और सारी मुसीबते खत्म हो जाएंगी ।

1859 के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाज़त उन्हें कभी कभी ही मिलती थी।

असहयोग आंदोल की समाप्ति :-

 फरवरी 1922 में महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया क्योंकि चौरी चौरा में हिंसक घटना हो गई थी ।

चौरी चौरा हत्याकांड की घटना :-

फरवरी 1922 में , गांधीजी ने नो टैक्स आंदोलन शुरू करने का फैसला किया । बिना किसी उकसावे के प्रदर्शन में भाग ले रहे लोगों पर पुलिस ने गोलियां चला दीं । लोग अपने गुस्से में हिंसक हो गए और पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया और उसमें आग लगा दी । यह घटना उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में हुई थी ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन :-

1921 के अंत आते आते , कई जगहों पर आंदोलन हिंसक होने लगा था । फरवरी 1922 में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय ले लिया । कांग्रेस के कुछ नेता भी जनांदोलन से थक से गए थे और राज्यों के काउंसिल के चुनावों में हिस्सा लेना चाहते थे । राज्य के काउंसिलों का गठन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट 1919 के तहत हुआ था । कई नेताओं का मानना था सिस्टम का भाग बनकर अंग्रेजी नीतियों विरोध करना भी महत्वपूर्ण था ।

स्वराज पार्टी :- 

 सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू ने परिषद् राजनीति में वापस लौटने के लिए कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन कर डाला।

जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस जैसे युवा नेता ज़्यादा उग्र जनांदोलन और पूर्ण स्वतंत्रता के लिए दबाव बनाए हुए थे।
आंतरिक बहस व असहमति के इस माहौल में दो ऐसे तत्व थे जिन्होंने बीस के दशक के आखिरी सालों में भारतीय राजनीति की रूपरेखा एक बार फिर बदल दी।

आर्थिक मन्दी का असर- 

पहला कारक था विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर। 1926 से कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने लगी थीं और 1930 के बाद तो पूरी तरह धराशायी हो गई।

कृषि उत्पादों की माँग गिरी और निर्यात कम होने लगा तो किसानों को अपनी उपज बेचना और लगान चुकाना भी भारी पड़ने लगा।
1930 तक ग्रामीण इलाके भारी उथल-पुथल से गुजरने लगे थे।

साइमन कमीशन:-

1927 में ब्रिटेन में साइमन कमिशन का गठन किया गया, ताकि भारत में सवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन किया जा सके । 1928 में साइमन कमीशन का भारत आना- पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुआ । कांग्रेस ने इस आयोग का विरोध किया क्योंकि इसमें एक भी भारतीय शामिल नही था । दिसंबर 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन हुआ था । इसमें पूर्ण स्वराज के संकल्प को पारित किया गया । 26 जनवरी 1930 को स्वाधीनता दिवस घोषित किया गया और लोगों से आह्वान किया गया कि वे संपूर्ण स्वाधीनता के लिए संघर्ष करें ।

साइमन आयोग में 7 सदस्य थे उनमें से एक भी भारतीय सदस्य नहीं था सारे अंग्रेज़ थे।  1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारों से किया गया।

नमक यात्रा और असहयोग आंदोलन (1930) :-

 31  जनवरी 1930 में महात्मा गांधी ने लार्ड इरविन के समक्ष अपनी 11 मांगे रखी ।

 लार्ड इरविन इनमें से किसी भी माँग को मानने के लिए तैयार नही थे ।

 6 अप्रैल 1930 को नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन यह घटना सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत थी ।

 महात्मा गांधी का यह पत्र एक अल्टीमेटम (चेतावनी) की तरह था। उन्होंने  लिखा था कि अगर 11 मार्च तक इनकी माँगें नहीं मानी गई तो

 कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ देगी।

 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा नमक यात्रा की शुरूआत ।

गाँधी इर्विन समझौते की विशेषताएँ :-

 5 मई 1931 ई . को गाँधी इरविन समझौता ।

 सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया जाये ।

 नमक पर लगाए गए सभी कर हटाए जाएँ ।

 कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन व पूर्ण स्वराज की माँग

दिसंबर 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज’ की माँग को औपचारिक रूप से मान लिया गया।

तय किया गया कि 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा और उस दिन लोग पूर्ण स्वराज के लिए संघर्ष की शपथ लेंगे। इस उत्सव की ओर बहुत कम ही लोगों ने ध्यान दिया।

► अब स्वतंत्रता के इस अमूर्त विचार को रोजमर्रा जिन्दगी के ठोस मुद्दों से जोड़ने के लिए महात्मा गांधी को कोई और रास्ता ढूँढ़ना था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं की भूमिका:-

 औरतों ने बहुत बड़ी संख्या में गाँधी के नमक सत्याग्रह में भाग लिया ।

 हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए यात्रा के दौरान घरों से बहार आ जाती थीं ।

 उन्होंने जलूसों में भाग लिया , नमक बनाया , विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की ।

 कई महिलाएँ जेल भी गईं ।

 ग्रामीण क्षेत्रों की औरतों ने राष्ट्र की सेवा को अपना पवित्र दायित्व माना ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन कैसे असहयोग आंदोलन से अलग था :-

 असहयोग आंदोलन में लक्ष्य ‘ स्वराज ‘ था लेकिन इस बार ‘ पूर्ण स्वराज की मांग थी ।

 असहयोग में कानून का उल्लंघन शामिल नही था जबकि इस आंदोलन में कानून तोड़ना शामिल था ।

1932 की पूना संधि के प्रावधान :-

► इससे दमित वर्गों (जिन्हें बाद में अनुसूचित जाति के नाम से जाना गया) को प्रांतीय एवं केंद्रीय विधायी परिषदों में आरक्षित सीटें मिल गई हालाँकि उनके लिए मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में ही होता था ।

सामूहिक अपनेपन का भाव :-

► वे कारक जिन्होने भारतीय लोगों में सामूहिक अपनेपन की भावना को जगाया तथा सभी भारतीय लोगों को एक किया ।

चित्र व प्रतीक :- भारत माता की प्रथम छवि बंकिम चन्द्र द्वारा बनाई गई । इस छवि के माध्यम से राष्ट्र को पहचानने में मदद मिली ।

चिन्ह :- उदाहरण झंडा :- बंगाल में 1905 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान सर्वप्रथम एक तिरंगा (हरा, पीला, लाल) जिसमें 8 कमल थे । 1921 तक आते आते महात्मा गांधी ने भी सफेद , हरा और लाल रंग का तिरंगा तैयार कर लिया था ।

इतिहास की पुर्नव्याख्या :- बहुत से भारतीय महसूस करने लगे थे कि राष्ट्र के प्रति गर्व का भाव जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाना चाहिए ताकि भारतीय गर्व का अनुभव कर सकें ।

गीत जैसे वंदे मातरम :- 1870 के दशक में बंकिम चन्द्र ने यह गीत लिखा मातृभूमि की स्तुति के रूप में यह गीत बंगाल के स्वदेशी आंदोलन में खूब गाया गया ।

दाण्डी यात्रा (12 मार्च 1930):- 

इरविन झुकने को तैयार नहीं थे। फलस्वरूप, महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गांधीजी के आश्रम से 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गांधीजी की टोली ने 24 दिन तक हर रोज़ लगभग 10 मील का सफ़र तय किया।

गांधीजी जहाँ भी रुकते हज़ारों लोग उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गांधीजी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और आह्वान किया कि लोग अंग्रेजों की शांतिपूर्वक अवज्ञा करें यानी अंग्रेज़ों का कहना मानें। 6 अप्रैल को वह दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था। यहीं से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होता है।

किसानों की आन्दोलन में भूमिका :-

गांवों में संपन्न किसान समुदाय-जैसे गुजरात के पटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट-आंदोलन में सक्रिय थे। व्यावसायिक फसलों की खेती करने के कारण व्यापार में मंदो और गिरती कीमतों से वे बहुत परेशान थे। जब उनकी नकद आय खत्म होने लगी तो उनके लिए सरकारी लगान चुकाना नामुमकिन हो गया। सरकार लगान कम करने को तैयार नहीं थी। चारों तरफ असंतोष था।

संपन्न किसानों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का बढ़-चढ़ कर समर्थन किया। उन्होंने अपने समुदायों को एकजुट किया और कई बार अनिच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी।

लेकिन जब 1931 में लगानों के घटे बिना आंदोलन वापस ले लिया गया तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। फलस्वरूप, जब 1932 में आंदोलन दुबारा शुरू हुआ तो उनमें से बहुतों ने उसमें हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। गरीब किसान केवल लगान में कमी नहीं चाहते थे। उनमें से बहुत सारे किसान जमींदारों से पट्टे पर जमीन लेकर खेती कर रहे थे।

महामंदी लंबी खिंची और नकद आमदनी गिरने लगी तो छोटे पट्टेदारों के लिए जमीन का किराया चुकाना भी मुश्किल हो गया। वे चाहते थे कि उन्हें ज़मींदारों को जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ़ कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया जिनका नेतृत्व अकसर समाजवादियों और कम्युनिस्टों के हाथों में होता था। अमीर किसानों और ज़मींदारों की नाराजगी के भय से कांग्रेस ‘भाडा विरोधी’ आंदोलनों को समर्थन देने में प्रायः हिचकिचाती थी। इसी कारण गरीब किसानों और कांग्रेस के बीच संबंध अनिश्चित बने रहे।

महिलाओं की भूमिका:- 

विदेशी कपड़ो व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की बहुत सारी महिलाएँ जेल भी गई शहरी इलाकों में ज्यादातर ऊँची जातियों की महिलाएँ आंदोलन में हिस्सा ले रही थीं गांधीजी के आहवान के बाद औरतों को राष्ट्र की सेवा करना अपना पवित्र दायित्व दिखाई देने लगा था| लेकिन सार्वजनिक भूमिका में इस इजाफें का मतलब यह नहीं था लेकिन सार्वजनिक भूमिका बदलाव आने वाला था।

गांधीजी का मानना था कि घर चलाना चूल्हा-चौका सँभालना, अच्छी माँ व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का निर्वाह करना ही औरत का असली कर्त्तव्य है। इसीलिए लंबे समय तक कांग्रेस संगठन में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर औरतों को जगह देने से हिचकिचाती रही। कांग्रेस को उनकी प्रतीकात्मक उपस्थिति में ही दिलचस्पी थी।

मुस्लिमों की समस्या:- 

असहयोग – खिलाफत आदोलन के शांत पड़ जाने के बाद मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबका कांग्रेस से कटा हुआ महसूस करने लगा था
1920 के दशक के मध्य से कांग्रेस हिंदू महासभा जैसे हिंदू धार्मिक राष्ट्रवादी संगठनों के काफी करीब दिखने लगी थी।  जैसे-जैसे हिंदू-मुसलमानों के बीच संबंध खराब होते गए, दोनों समुदाय उग्र धार्मिक जुलूस निकालने लगे। इससे कई शहरों में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक टकराव व दंगे हुए। हर दंगे के साथ दोनों समुदायों के बीच फासला बढ़ता गया।

कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने एक बार फिर गठबंधन का प्रयास किया। 1927 में ऐसा लगा भी कि अब एकता स्थापित हो ही जाएगी। सबसे महत्त्वपूर्ण मतभेद भावी विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व के सवाल पर थे। मुस्लिम लीग नेताओं में से एक मोहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि अगर मुसलमानों को केंद्रीय सभा में आरक्षित सीटें दी जाएँ और मुस्लिम बहुल प्रातों बगांल और पंजाब में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिका के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए तो वे मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिक की माँग छोड़ने के लिए तैयार है ।

प्रतिनिधित्व के सवाल पर यह बहस-मुबाहिसा चल ही रहा था कि 1928 में आयोजित किए गए सर्वदलीय सम्मेलन में हिंदू महासभा के एम.आर. जयकर ने इस समझौते के लिए किए जा रहे प्रयासों की खुलेआम निंदा शुरू कर दी जिससे इस मुद्दे के समाधान की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ उस समय समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था कांग्रेस से कटे हुए मुसलमानों का बड़ा तबका किसी संयुक्त संघर्ष के लिए तैयार नहीं था। बहुत सारे मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी भारत में अल्पसंख्यकों के रूप में मुसलमानों की हैसियत को लेकर चिंता जता रहे थे। उनको भय था कि हिंदू बहुसंख्या के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान खो जाएग|

राष्ट्रवादी भावना के विस्तार में इतिहास की भूमिका:- 

इतिहास की पुनर्व्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन थी। उन्नीसवीं सदी के अंत तक आते-आते बहुत सारे भारतीय यह महसूस करने लगे थे कि राष्ट्र के प्रति गर्व का भाव जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाया जाना चाहिए अंग्रेजों की नज़र में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं सँभाल सकते।

इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे उन्होंने उस गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू कर दिया।

जब कला और वास्तुशिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे। उनका कहना था की इस महान युग के बाद पतन का समय आया और भारत को गुलाम बना लिया गया।

इस राष्ट्रवादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था।

 लोगों को एकजुट करने की इन कोशिशों की अपनी समस्याएँ थीं।

 जिस अतीत का गौरवगान किया जा रहा था। वह हिंदुओं का अतीत था।

 छवियों का सहारा गौरवगान किया जा रहा था वह हिंदुओं का अतीत था।

 जिन छवियों का सहारा लिया जा रहा था वे हिंदू प्रतीक थे।

 इसलिए अन्य समुदायों के लोग अलग-अलग महसूस करने लगे थे।

भारत में राष्ट्रवाद (समय के अनुसार एक नजर में) :-

 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ ।

 1870 बंकिमचंद्र द्वारा वंदेमातरम की रचना हुई ।

 1885 में कांग्रेस की स्थापना बम्बई ( मुम्बई ) में हुई । व्योमेश चंद्र बनर्जी कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष बने ।

 लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव किया ।

 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया ।

 1906 में आगा खां एवं नवाब सलीमुल्ला ने मुस्लिम लीग की स्थापना की ।

 1907 में कांग्रेस का विभाजन नरम दल एवं गरम दल में हुआ ।

 1911 में दिल्ली दरबार का आयोजन । दिल्ली दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द किया गया । दिल्ली दरबार में राजधानी कोलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित की गई ।

 1914 में प्रथम विश्व युद्ध का आरम्भ ।

 1915 में महात्मा गाँधी की स्वदेश वापसी ।

 1917 में महात्मा गाँधी ने नील कृषि के विरोध में चंपारण में आंदोलन किया ।

 1917 में महात्मा गाँधी ने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों के लिए सत्याग्रह किया ।

 1918 में महात्मा गाँधी ने गुजरात के अहमदाबाद में सूती कपड़ा मिल के कारीगरों के लिए सत्याग्रह किया ।

 1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति हुई ।

 ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की स्वशासन की माँग को ठुकरा दिया ।

 1919 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर रॉलट एक्ट जैसा काला कानून दिया ।

 13 अप्रैल 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ ।

 1919 में खिलाफत आंदोलन की शुरुआत मुहम्मद अली व शौकत अली ने की ।

 महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरूआत की ।

 1922 में चौरी – चौरा में हुई । हिंसक घटना के बाद महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया ।

 9 अगस्त 1925 को काकोरी में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाना ले जा रही ट्रेन को लूट लिया ।

 1928 में साइमन कमीशन भारत आया जिसका विरोध करते हुए लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई ।

 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली पर बम फेंका

 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने साबरमती से दाण्ड़ी यात्रा आरम्भ की ।

 6 अप्रैल 1930 को दाण्डी पहुँच कर महात्मा गाँधी नमक कानून तोड़ा व सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की ।

 1930 में डॉ . अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया ।

 23 मार्च 1931 को भगत सिंह , सुखदेव एवं राजगुरू को फांसी दे दी गई ।

 1931 गांधी इरविन समझौता व सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस ले लिया ।

 1931 में महात्मा गाँधी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया । परंतु उन्हें वहाँ अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लगी ।

 1932 मे महात्मा गांधी एवं अम्बेडकर के मध्य पूना पैक्ट हुआ ।

 1933 में चौधरी रहमत अली सर्वप्रथम पाकिस्तान का विचार सामने रखा ।

 1935 में भारत शासन अधिनियम पारित हुआ व प्रांतीय सरकार का गठन ।

 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ ।

 1940 के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवशेन में पाकिस्तान की मांग का संकल्प पास किया गया ।

 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत व गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया ।

 1945 में अमेरीका ने जापान पर परमाणु हमला किया व द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया ।

 1946 में कैबिनेट मिशन संविधान सभा के प्रस्ताव के साथ भारत आया ।

 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ।