व्यापार और भूमंडलीकरण (Vyapar aur Bhumandalikaran)
विश्व बाजार- उस तरह के बाजारों को हम विश्व बाजार कहेंगे जहाँ विश्व के सभी देशों की वस्तुएँ आमलोगों को खरीदने के लिए उपलब्ध हो। जैसे- भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई।
वाणिज्यिक क्रांति- व्यापार के क्षेत्र में होने वाला अभूतपूर्व विकास और विस्तार जो जल और स्थल दोनों मार्ग से सम्पूर्ण विश्व तक पहुँचा। इसका केन्द्र यूरोप ( इंगलैंड ) था।
औद्योगिक क्रांति- वाष्प शक्ति से संचालित मशीनों द्वारा बड़े-बड़े कारखानों में व्यापक पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन। इसका केन्द्र इंग्लैण्ड था वह 1750 के बाद आरंभ हुआ।
साम्राज्यवाद- यूरोपीय देशों द्वारा एशिया और अफ्रीका के क्षेत्रों पर सैनिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त कर उसे अपने प्रत्यक्ष अधीन में रखना।
आर्थिक मंदी- अर्थतंत्र में आनेवाली ऐसी स्थिति जब उसके तीनों आधार कृषि, उद्योग, और व्यापार का विकास अवरूद्ध हो जाए। लाखों लोग बेरोजगार हो जाए, बैंकों और कंपनियों का दिवाला निकल जाए तथा वस्तु और मुद्रा दोनों की कीमत नहीं रहे।
शेयर बाजार- वैसा स्थान जहाँ व्यापारिक और औद्योगिक कंपनियों के बाजार मूल्य का निर्धारण होता है।
सट्टेबाजी- कंपनियों में पूँजी लगा कर उसका हिस्सा खरीदना ताकि उसका मूल्य बढ़े और पुनः उसे बेच देना।
संरक्षणवाद- अपने वस्तुओं को विदेशी वस्तुओं के आमद से होने वाले नुकसान से उसे बचाने के लिए विदेशी वस्तु पर ऊँची आयात शुल्क लगाना।
न्यू-डील- जनकल्याण की एक बड़ी योजना से संबंधित नई नीति जिसमें आर्थिक क्षेत्र के अलावा राजनीतिक और प्रशासनिक नीतियों को भी नियमित किया गया।
अधिनायकवाद- वैसी राजनैतिक प्रशासनिक व्यवस्था जिसमें एक व्यक्ति के हाथ सारी शक्तियाँ केन्द्रित होती है। वह व्यक्ति परिस्थितियों का लाभ उठाकर जनता के बीच नायक की छवि बनाता है।
भूमंडलीकरण- जीवन के सभी क्षेत्रों का एक अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप, जिसने दुनिया के सभी भागों को आपस में जोड़ दिया है- सम्पूर्ण विश्व एक बड़े गाँव के रूप में परिवर्तित हो गया है।
पूँजीवाद- पूँजी पर आधारित एक व्यवस्था जो बाजार और मुनाफा के उपर टिका है।
शीत युद्ध- राज्य नियंत्रित और बाजार नियंत्रित अर्थव्यवस्था वाले देशों के नेतृत्वकर्ता देशों सोवियत रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच सामरिक तनाव।
बहुराष्ट्रीय कंपनी- कई देशों में एक ही साथ व्यापार और व्यवसाय करने वाले कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनी कहा जाता है। 1920 के बाद से इस तरह की कंपनियों का उत्कर्ष हुआ जो द्वितीय महायुद्ध के बाद काफी बढ़ा।
उपनिवेशवाद- उपनिवेशवाद एक ऐसी राजनैतिक आर्थिक प्रणाली जो प्रत्यक्ष रूप से एशिया और अविकसित अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका में यूरोपीय देशों द्वारा त्याग किया गया। इसका एक मात्र उद्देश्य था इन देशों का आर्थिक शोषण करना।
गिरमिटिया मजदूर- औपनिवेशिक देशों के ऐसे श्रमिक जिन्हें एक निश्चित समझौता द्वारा निश्चित समय के लिए अपने शासित क्षेत्रों में ले जाते थे, इन्हें मुख्यतः नकदी फसलों-जैसे गन्ना के उत्पादन में लगाया जाता था। भारत के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों (पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बिहार) पंजाब, हरियाणा से गन्ना की खेती के लिए जमैका, फिजी, त्रिनिदाड एवं टोवैको, मॉरिशस आदि देशों में ले जाया गया।
प्राचीन विश्व बाजार का स्वरूप और स्पष्ट प्रमाण अलेक्जेण्ड्रीया नामक बड़ा व्यापारिक केन्द्र की चर्चा के क्रम में मिलता है।
यह शहर तीन महादेशों अफ्रीका, यूरोप और एशियाके व्यापारियों का केन्द्र था।
कक्षा 10 इतिहास अध्याय – 7 ( व्यापार और भूमंडलीकरण )
विश्वबाजार का स्वरूप और विस्तार
- औद्योगिक क्रांति के फेलाव के साथ-साथ बाजार का स्वरूप विश्वव्यापी होता गया।
- किसानों को अपने उपज का अच्दा रिटर्न मिलता था, क्योंकि बाजार ज्यादा प्रतिस्पर्धी होता है।
- रोजगार के नए अवसर सृजित होते है।
- आधुनिक विचार और चेतना का भी प्रसार होता है।
विश्वबाजार के लाभ
- आधुनिकीकरण
- औपनिवेशिक देशों में रेलमार्ग-सड़क, बन्दरगाह, खनन, बागवानी जैसे संरचनात्मक क्षेत्र का विकास हुआ।
- नवीन तकनिक को सृजित किया।
- रेलवे, वाष्प इंजन, भाप का जहाज, टेलीग्राफ, बड़े जलपोत महत्वपूर्ण रहा।
- शहरीकरण का विकास
विश्वबाजार के हानि
- साम्राज्यवाद का उदय
- कृषि, लघु तथा कुटिर उद्योगों का पतन
- औपनिवेशिक देशों में अकाल और भुखमरी
- यूरापीय देशों के बीच साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा
आज जीविकोपार्जन और भूमंडलीकरण का अन्तर्साम्य संबंध
- शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से सैनिक शक्ति को आर्थिक शक्ति द्वारा पीछे छोड़ दिया गया।
- 1991 के बाद सम्पूर्ण विश्व में सेवा क्षेत्र का विस्तार काफी तीव्र गति से हुआ है, जिससे जीवीकोपार्जन के कई नए क्षेत्र खुल गए हैं।
- यातायात की सुविधा ( बस, टैक्सी, हवाई जहाज ), बैंक, और बीमा क्षेत्र में दी जानेवाली सुविधा, दूरसंचार, और सूचना तकनिक ( मोबाइल, फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट ) होटल और रेस्टोरेंट, बड़े शहरों में शॉपिंग मॉल, कॉल सेंटर आदि काफी तेजी से फैला है।
- पर्यटक स्थल का विकास हो रहा है।
- लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त हो रहा है।
महामंदी
आर्थिक महामंदी की शुरुआत 1929 से हुई और यह संकट तीस के दशक तक बना रहा | इस दौरान दुनिया आर्थिक महामंदी के चपेट में आ गया | महामंदी से रोजगार, आय और व्यापार में गिरावट आई | बोरोजगारी में कारण लोगों की आय में कमी आई | ऐसी स्थिति लगभग सभी देशों में थी |
Note –
आर्थिक महामंदी के कारण
- कृषि क्षेत्र में अत्पादन |
- अमेरिका पूँजी के प्रवाह में कमी |
- महामंदी का प्रभाव |
- अमेरिका पर प्रभाव
- यूपोप पर आर्थिक महामंदी का प्रभाव |
- भारत पर प्रभाव |
महामंदी का प्रभाव
अमेरिका पर प्रभाव – औद्योगिक देशों में मंदी का सबसे बुरा असर अमेरिका पर ही पड़ा | मंदी की आशंका तथा कीमतों में कमी को देखते हुए अमेरिकी बैंकों ने घरेलू कर्ज देने बंद कर दिये | जो कर्ज ले चुके थे उनसे कर्ज वसूली की प्रक्रिया तेज कर दी गई | कृषि उत्पाद के मूल्य गिराने से किसान अपनी उपज बाजार में नहीं बेच पा रहे थे जिससे उनके परिवार पर व्यापक असर पड़ा | कर्ज चुकाने में उनकी नाकामयाबी होने पर उनकी कार, मकान और सारी जरुरी चीजों की कुर्की हो गई |
यूपोप पर प्रभाव – यूपोप पर भी आर्थिक महामंदी का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा | अमेरिका में घरेलू संकट उत्पन्न होने से वह यूपोप के देशों में दिये हुए कर्ज वापस माँगने लगे | जिससे यूपोप के सभी देशों के समक्ष गहरा संकट उत्पन्न हो गया | सबसे अधिक ब्रिटेन तथा जर्मनी प्रभावित हुआ |
भारत पर प्रभाव – भारत भी आर्थिक महामंदी के प्रभाव से बच नहीं पाया था | भारत पर भी आर्थिक महामंदी के कई प्रभाव पड़े | महामंदी के पूर्व भारत से कच्चे माल का निर्यात किया जाता था तथा यूपोप और अन्य देशों से तैयार माल भारत में आयात किये जाते थे | भारत महामंदी ने भारतीय व्यापार को प्रभावित किया |
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कीन्स के अनुसार भारत से सोने के निर्यात से विश्व अर्थव्यवस्था को पुनजीवित करने में काफी मदद मिली | इस निर्यात से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में काफी सुधार आया परंतु भारतीय किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ |
युद्धोतर विश्व बाजार और बदलते अंतर्राष्ट्रीय संबंध
प्रथम विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बीस वर्षों के बाद दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया | यह युद्ध भी दो गुटों, मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों के बीच हुआ | 1929 के आर्थिक मंदी का आधार वर्ष मानकर 1920 से 1945 के बीच वाले आर्थिक संबंध को दो भाग में बाँटा गया है | पहला 1920 से 1929 तक का काल तथा दूसरा 1929 से द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति 1945 तक का काल |
विश्वमंदी और अंतर्राष्ट्रीय संबंध – आर्थिक मंदी में यूरोप के राजनीतिक स्थिति में दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए | एक तो रूस में महामंदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा | रूस में साम्यवादी आर्थिक और राजनीति व्यवस्था का प्रचालन था जिससे उसका प्रभाव बढ़ गया | दूसरे इटली तथा जर्मनी में अधिनायकवादी शासन प्रणाली का उदय हुआ |
संयुक्त राष्ट्र और मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मलेन – जुलाई 1944 में अमेरिका स्थिति न्यू हैम्पशायर के ब्रेटर युड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मलेन बुलाया गया | इस सम्मेलन में विदेशी व्यापार में लाभ तथा घाटे से निपटने के लिए दो संस्थानों का गठन किया गया | पहला अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई० एम० एफ०) की स्थापना की गई तथा दूसरा अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माणएवं विकास बैंक अथवा विश्व बैंक की स्थापना हुई | इन दोनों वित्तीय संस्थानों को ‘ब्रेटन वुड्स की जुड़वा संतानों’ के नाम से जाना जाता है |
विश्व बैंक तथा आई० एम० एफ० ने 1947 में औपचारिक रूप से काम करना आरंभ कर दिया | इन दोनों संस्थानों पर “संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव” कायम रहा | अमेरिका को आई० एम० एफ० और विश्व बैंक के किसी भी निर्णय पर ‘वीटो’ (निषेधाधिकार) प्रदान किया गया |
भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण)
भूमंडलीकरण प्रक्रिया द्वारा विश्व के सभी राष्ट्र राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से जुड़ जाते हैं | अर्थात् वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें हम अपने निर्णयों को दुनिया के एक एक क्षेत्र में क्रियांवित करते हैं, जो दुनिया के दूरवर्ती क्षेत्र में व्यक्तियों और समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका क्षेत्र में व्यक्तियों और समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है |
भूमंडलीकरण शब्द का सबसे पहला व्यवहार संयुक्त राज्य अमेरिका के जॉन विलियम्सन ने 1990 में किया | पूँजीवाद जो बाजार के मुनाफा पर आश्रित था, के विकास से वैश्वीकरण का उदय हुआ |
1995 में विश्व व्यापार संस्था (W. T. O) की स्थापना की गई | भारत में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनी खुली | 1920 से ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना हो चुकी थी | विकासशील देशों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली (एन० आई० ई० ओ०) की स्थापना की कोशिश कर अनेक समूह बनाये | जी-77, जी-8, ओपेक, आसियान, दक्षेस (सार्क) यूपोपीय संघ इत्यादि का भूमंडलीकरण की प्रक्रिया को विकसित करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा |
