प्रेस- संस्कृति एवं राष्ट्रवाद
1. छापाखाना :- छापाखाना का अविष्कार का महत्व इस भौतिक संसार में आग, पहिया और लिपि की तरह है। जिसने अपनी उपस्थिति से पूरे विश्व के जीवन शैली को एक नया आयाम प्रदान किया।
2. गुटेनबर्ग :- गुटेनबर्ग जर्मनी के जन्म लिया था। वह बचपन से ही तेल और जैतून पर पड़ने वाली मशीनों से परिचित था। गुटेनबर्ग ने अपनी ज्ञान एवं अनुभव टुकड़ों में बिक्री, मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को एकत्रित किया। मुद्रा बनाने हेतु उसने सीमा, टिन और बीसपथ हेतु उचित मिश्र धातु बनाने का तरीका ढूंढ निकाला।
3. बाईबिल :- गुटेनबर्ग को फर्स्ट नामक सुनार से बाइबल छापने का ठेका प्राप्त हुआ। पुराने 42 लाइन एवं 36 लाइन के बाइबल गुटेनबर्ग द्वारा छापे गए, 421 लाइन वाले बाइबल का मुद्रण गुटेनबर्ग द्वारा शुरू किया गया। फर्स्ट और शुओफर द्वारा उसे पूर्ण किया गया।
4. रेशम मार्ग :- लकड़ी के ब्लॉक द्वारा होनेवाली मुद्रण कला प्रशिया – सीरिया मार्ग जिसे रेलमार्ग के नाम से जाना जाता है।.
5. यंग इंडिया :- गाँधी जी ने यंग इंडिया तथा ‘हरिजन’ के माध्यम से अपने विचारों एवं राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रचार किया। सरकार को अपने राजनैतिक कार्यक्रम से अवगत कराया तथा भारत अवाम् को एक बड़ा आंदोलन किया।
6. मराठा :- बाल गंगाधर तिलक के संपादन में 1881 ईसवी में मुंबई से अंग्रेजी भाषा में मराठा की शुरुआत हुई। इनका जनमानस पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
7. वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट :- लीटन ने 1878 के देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम के माध्यम से समाचार पत्रों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। इस अधिनियम के माध्यम से जिला दंडनायक बंधनपत्र एवं जमानत पर किसी समाचार पत्र को प्रकाशित करने की आज्ञा इस तर्ज पर देखी ताज ग्राउंड के विरुद्ध भड़काने वाले कोई समाचार नहीं छापेंगे।
8. सर सैयद अहमद :- राष्ट्रीय राजनीति के में सर सैयद अहमद के बदते प्रभाव कांग्रेस समर्थित राष्ट्रीय आंदोलन एवं अंग्रेजी राज्य से मुसलमानों को सम्बन्ध करने के लिए प्रेरित किया। सर सैयद अहमद आरंभ में राष्ट्रवादी थे। बाद में दृष्टिकोण अपनाया और ब्रिटिश सरकार के पक्ष में मुसलमानों से सहयोग की अपील की उन्होंने अलीगढ़ जनरल नामक पत्र निकाले।
9. प्रोस्टेंट वाद :- प्रोटेस्टेट वाद का प्रवर्तक मार्टिन लूथर थे उसने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियो की आलोचना की। इससे कैथोलिक चर्च की सत्ता से लोगों का विश्वास उठने लगा और प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई।
कक्षा 10 इतिहास अध्याय – 8 ( प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद )
1. गुटेनबर्ग ने मुद्राणयंत्र का विकास कैसे किया?
गुटेनबर्ग ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध के संगठित किया। टाइपो के लिए पंच, मेट्रिक्स, मोल्ड आदि बनाने का कार्य किया। उसने शीशा, टिन और बिसमर्थ धातुयों से मिश्र धातु बनाने का तरीका ढूंढा टिन का उपयोग उसकी कठोरता एवं गलाने के गुणों से किया। गुटेनवर्ग का ऐतिहासिक मुद्राणयंत्र शोध 1440वे वर्ष मे आरम्भ हुआ।
2. छापाखाना यूरोप मे कैसे हुआ ?
लकड़ी के ब्लॉक् द्वारा होनेवाले मुद्राण कला पर्सीयो-सीरिया मार्ग से ( रेशम मार्ग ) व्यापारियों द्वारा यूरोप मे सर्वप्रथम रोम मे हुई 13वी शताब्दी के अंतिम रोमन लिपि मे लकड़ी और धातु से बने टाइपो का प्रसार तेजी से हुआ। कागज बनाने की कला 11वी सदी मे पूरब से यूरोप पहुँची 1475 ई. मे सर विलियन कैप्सन मुद्रण कला को इंग्लैंड मे लाये। पुर्तगाली ने इसकी शुरुआत 1544 ई. मे की।
3. इनक्विजिशन
धर्म विरोधी विचारों को दबाने के लिए कैथोलिक चर्च में इनक्विजिशन आरंभ किया। जिसके माध्यम से विरोधी विचारधारा के प्रकाशकों और पुस्तकों विक्रेताओं पर प्रतिबंध लगाया गया । इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छपाई से नए बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ था। आंदोलन के नए विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आम लोगों तक पहुँचा। इसे कम पढ़े लिखे लोगों भी धर्म का अलग-अलग परिचित हुए। बिपरीत बिचार आने से कैथोलिक चर्च क्रूद्ध हो गया। जिसके कारण इनक्विजिशन शुरू किया।
4. पांडुलिपि
भारत में छापाखाना के विकास के पहले हाथ से लिखकर पांडुलिपि को तैयार करने की पुरानी परंपरा थी। संस्कृत, अरबी एवं फारसी साहित्य की रचनाएँ होती रहती थी। मजबूती प्रदान करने के लिए जल्द भी किया गया था। पांडुलिपिया काफी नाजुक और महंगी होती थी। पांडुलिपियों की बनावट कठिन होने के कारण यह आम जनता के पहुँच से बाहर थी।
5. लॉर्ड लिटन राष्ट्रीय आंदोलन
लॉर्ड लिटन अंग्रेजी समाचार पत्र सरकार का समर्थन था। लेकिन देशी समाचार पत्रों के समाजवादी नीतियों के विरुद्ध राष्ट्रवादी भावनाओं को उत्पन्न किया। इसने 1878 ईसवी में देशी भाषा समाचार पत्रों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। राष्ट्रीय स्तर पर इसका मुखर विरोध हुआ। जिससे राष्ट्रीयता की भावना पनपी और उबाल लाने का काम किया।
1. मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व के प्रभाव
छापाखाना की संख्या में वृद्धि के परिणाम पुस्तक निर्माण में वृद्धि हुई। 15 वीं शताब्दी तक यूरोपीय बाजार में लगभग दो करोड़ मुद्रित किताबें आई जिसकी संख्या 16वी सदी तक 20 करोड़ हो गई। आम लोगों की जिंदगी ही बदल दी आम लोगों का जुड़ाव, सूचना,ज्ञान, संस्था, और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ जिसके कारण लोगों में बदलाव आया।
लूथर के लेख आम लोगों में काफी लोकप्रिय हुए और प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई। धर्म सुधार आंदोलन के नए विचारों का फैलाव तीव्र गति से आम लोगों तक पहुँचा।
1820 में क्रांति के प्रगति का प्रकाश यूरोप में फैल चुका था। अब लोगों में आलोचनात्मक सवालिया विकसित हुआ। सार्वजनिक दुनिया ने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया।
2. 19वीं सदी में भारत में प्रेस के विकास
19वीं शताब्दी की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भारतीय द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचार पत्र 1816 में गंगाधर का सप्ताहिक ‘बंगाल गजट’ तथा 1818 में ब्रिटिश नामक पत्रकार की सेवा की।
1821 ईस्वी बंगाल में संवाद कौमुदी तथा 1822 फारसी में प्रकाशित मीरापुर अखबार के साथ राष्ट्रीय समाचार पत्रों का आरंभ हुआ। 1822 ईस्वी में मुंबई से गुजराती भाषा में दैनिक मुंबई समाचार निकलने लगे। राममोहन राय के प्रयास से 1830 ईसवी में बंगदत की स्थापना हुई। 1831 ईसवी में जामे में जमशेद 1851 ईसवी में गोफ्तार तथा अखबारे सौदागर का आरंभ हुआ।
19वीं शताब्दी अंग्रेजों द्वारा समर्थित गई समाचार पत्र के जिसमें टाइम्स ऑफ इंडिया। 1861 ईस्वी स्टेटमेंट। 1875 ईसवी इंग्लिश मैन कोलकाता से है। 1865 ईसवी में इलाहाबाद से और 1876 ईसवी में सीवील और गजट लाहौर से प्रकाशित होने लगे थे।
1858 इसी में ईश्वर चंद्र विद्यासागर प्रकाशन के रूप में बंगाल में आरंभ किया। 1875-75 ईसवी के बीच इस पत्र के इंडियन मिरर का प्रकाश आरंभ किया। मोतीलाल घोष के संपादन में 1868 ईस्वी से अंग्रेजी बंगला सप्ताहिक रूप में अमृत बाजार का महत्वपूर्ण स्थान था। 1899 ईस्वी में अंग्रेजी मासिक हिंदुस्तान रिव्यू की स्थापना की।
3. भारतीय प्रेस की विशेषताओं
19वीं शताब्दी में जागरूकता के कारण सामान्य जनता के कारण जमींदारों तक की रूचि राजनीति में नहीं थी। समाचार पत्रों का वितरण कम था। फिर समाचार पत्र द्वारा न्यायिक निर्णय धार्मिक और जातीय भेदभाव की आलोचना करने से धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन को बल मिला।
1857 ई. के विरोध के समाचार पत्रों का विभाजन किया। भारत में दो तरह के प्रेस थे। एंग्लो इंडियन प्रेस और भारतीय प्रेस। एंग्लो इंडियन की प्राकृतिक और आकाश बिदेशी तथा यह भारतीय में फूट डालो और शासन करो इसके द्वारा भारतीय नेताओं पर राज्य के प्रति गैर वफादारी का सदैव आरोप लगाया जाता रहा।
19वीं से 20 वीं सदी में राजा राममोहन राय,सुरेंद्रनाथ बनर्जी,बाल गंगाधर तिलक, दादाभाई नरोजी, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, मोहम्मद अली,मौलाना आजाद, आदि। प्रेस के शक्तिशाली तथा प्रभाव कारी बनाया।
4. राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीय प्रेस का प्रभाव
प्रेस में राष्ट्रीय आंदोलन के हर पक्ष चाहे वह राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक हो या संस्कृतिक सब को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। प्रेस के माध्यम से राष्ट्रीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार की नीति में जागरण फैलाने का कार्य किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से पूर्व समाचार ने राजनीतिक शिक्षा देने का दायित्व अपने ऊपर लिया। देश में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार द्रुतगति से हुआ। नई शिक्षा नीति के प्रति व्यापक और संतोष को सरकार का कार्य प्रेस ने नहीं किया। अंग्रेजों द्वारा जो भारत का आर्थिक शोषण हो रहा था। इसके विरूद्ध भी प्रेस ने आवाज उठाई।
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी के प्रयासों का भारतीय प्रेस ने उल्लेख किया गया। रूस जापान युद्ध 1904-5 ईसवी में रूस की पराजय को समाचार और राष्ट्रवाद बढ़ाने का काम किया। देश के राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा एवं निर्माण में प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संपूर्ण देश के लोग के बीच सामाजिक कुरीतियों को दूर करने राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
5. मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। या आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुंचा ?
मानव लेखन सामग्री के अविष्कार के चट्टानों तथा गुफाओं को खुदाई करता था तथा मिट्टी की टिकिओ का उपयोग करता था। 105 ई. मे टस लाई लून ने कपास एवं कागज बनाया। इसकी शुरुआत 594 ईसवी में लकड़ी के ब्लॉक के माध्यम से की गई। 712 ईसवी में चीन के समिति क्षेत्रों में फैल गया। 760 ईसवी चीन और जापान में 10 वीं सदी तक ब्लॉक प्रिंटिंग की प्रक्रिया पत्र भी छापे गए।
1336 ईसवी में प्रथम पेपर मिल की स्थापना जर्मनी में हुई। जिसे 1430 ईसवी के दशक में स्ट्रेसवर्ग के योगदान गुटेनबर्ग ने पूरा किया।
1475 ईसवी में सर विलियम कैक्सटन मुद्रणकला को इंग्लैंड में लाए। तथा वेस्ट मिनिस्टर कस्बे में उनका प्रथम प्रेस स्थापित हुआ। पुर्तगाल में इसकी शुरुआत 1544 ईसवी में हुई। यह आधुनिक रूप में विश्व के अन्य देशों में पहुँची।
